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Varanasi ki Vyatha - a poem by Nand Kishore Nandan

8 April 2014

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पॠरिय मितॠरो ,

बनारस की मेल -मोहबॠबत और गंगा - जमॠनी संसॠकृति खतरे में है। उस खतरे का सामना करने का साहस और सामरॠथॠय देती ननॠद किशोर नंदन जी की यह कविता पेशे खिदमत है —

काशी नगरी विशॠवनाथ की, दाता के दरबार की,
यह कबीर की भूमि, बॠदॠध की वरॠणा-करॠणा-धार की,
फूट डालकर हमें लड़ाने आया है, पहचान ली-
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल-मॠहबॠबत-पॠयार की।

1

दो और तेरह के दंगों का
पहले हमें हिसाब चाहिà¤
मारे गये हजारों, बेघर
अब तक, आज जवाब चाहिठ,
भाषा-वेश बदलकर ठगता, फितरत नर-संहार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

2

कॠया कसूर था इशरत का, जो
मासूमों का खून बहाया
इतनी नफ़रत, इतनी पशॠता
बूूंद बराबर रहम न आया,
बड़े-बड़ों को धूल चटातीं आहें हर लाचार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

3

दिलॠली के लालच में रैली
याद बनारस की अब आई,
हर हर मोदी खॠद बन बैठI
भूल गये शिव की पॠरभॠताई,
किस पर गरॠव? रौंदते जन को, सांसे मिलीं उधार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

4

यदि विकास की धारा समरस
मॠसॠलिम, दलित, कृषक कॠयों ओठल?
कूट रहे निरॠधन जनता को
ले धनियों से मूसल-ओखल,
तॠठको धनपतियों की चिनॠता उनके धन-विसॠतार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

5

जैसे साड़ी बॠने बनारस
वैसे ही रिशॠते बॠनता है
मजमा, भीड़, तमाशा जो हो,
वह तो मानव को चॠनता है।
नहीं चलेगी यहां सियासत रिशॠतों के वॠयापार की।
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

6

यहां अजान-आरती गूंजे
भरे बहॠलता जीवन में रस
होने देंगे लाल न गंगा
मानवता की शान बनारस
राह दिखायी पॠरेमचंद ने पॠरेम, दया, उपकार की।
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

7

हमंे लड़ाकर करे सियासत
यह हमको सॠवीकार नहीं है,
वह न हमारा नायक होगा
जिसके दिल में पॠयार नहीं है।
कठिन परीकॠषा है विवेक की, चिनॠता यह संसार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।

(Prof. Nand Kishore Nandan)