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सतॠयपाल डांग को याद करते हॠठ.. RIP comrade Satyapal Dang - homage to a great man

by Dilip Simeon’s Blog, 20 June 2013

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Comrade Satyapal Dang stalwart of the communist movement in Punjab, passed away on June 15, 2013. Comrade Dang was one of the tallest figures of modern India. His courageous resistance to communal hatred, personal modesty and spotless honesty was an inspiration to lakhs of Indians, even those who remained outside his party. I shall add some memories to this post soon. Here is a tribute by Purushottam Agrawal, containing many shared experiences:

उनसे पहली भेंट टॠरेन में सहयातॠरी के रूप में हॠई थी। वे भी जबलपॠर जा रहे थे, और हम याने मैं और नीलांजन Nilanjan Mukhopadhyay भी। रासॠते में कॠछ बातचीत हॠई, और हमें लगा कि कोई रिटायरॠड बॠजॠरॠग अपने घर जा रहे हैं, हम लोग ’विवेचना’ और इपॠटा दॠवारा आयोजित सांपॠरदायिकता विरोधी समॠमेलन में हिसॠसा लेने जा रहे थे। सॠटेशन पर गाड़ी रॠकने पर, आय़ोजकों के आने पर ही मालूम पड़ा कि हमारे साथ सेकेंड कलास में यातॠरा करते, "रिटायरॠड बॠजॠरॠग" कामरेड सतॠयपाल डाठग थे। वे ही सतॠयपाल डाठग जिनके लेख हम लोग ’मेनसॠटॠरीम’ में अतॠयंत उतॠसॠकता से पढ़ा करते थे और सोचा करते थे कि कभी मॠलाकात हो तो यों बहस करेंगे, तॠयों बहस करेंगे।बहस हॠई, उस कारॠयकॠरम में भी जम कर बहस हॠई। हम लोगों के लिठयह मानना मॠशॠकिल था कि अकाली आंदोलन के ’फॉरॠम’ याने घोर सांपॠरदायिकता पर जॠयादा धॠयान देने की जरूरत नहीं, उसके ’कंटेंट’ याने किसानों के असंतोष पर ही धॠयान देने की जरूरत है। à¤•à¤¾à¤®à¤°à¥‡à¤¡ डाठग पारॠटी-लाइन का अनॠसरण तो कर रहे थे, लेकिन हम लोगों की बातों के साथ संवाद बनाठरखने की गॠंजाइश रखते हॠठ। 

यह बात 1982 की है।1983 में जब साहितॠयेतर विषयों पर केंदॠरित पतॠरिका के रूप में ’जिजॠञासा’ के पहले अंक का पॠरकाशन किया, तब कई अनॠय वरिषॠठों की तरह कामरेड डाठग का सहयोग भी हमें पॠरापॠत हॠआ। ’जिजॠञासा’, हिनॠदी में अपनी तरह की पहली पतॠरिका थी। हमारी कोशिश थी कि इतिहास, अरॠथशासॠतॠर. समाजशासॠतॠर आदि विषयों की सामगॠरी पॠरकाशित की जाठ। पहला अंक सांपॠरदायिकता पर केंदॠरित था, संपादन मैंने और नीलांजन ने मिल कर किया था। संपादकीय में कही गयीं बातों से अनेक वामपंथी मितॠर चिढ़े भी थे, लेकिन आगे के इतिहास में वे बातें सही ही साबित हॠईं।

कामरेड डाठग से अगली मॠलाकात ’सांपॠरदायिकता विरोधी आंदोलन’ के सॠथापना समॠमेलन में, 1987 में हॠई। दिलीप सीमियन, भगवान जोश और अनॠय कई मितॠरों के साथ मिल कर इस ’आंदोलन’ का गठन किया था, पृषॠठभूमि में थे 1984 और 1987 ( मलियाना, मेरठ) के अनॠभव। कामरेड डाठग को हमने गॠरॠशरणसिंहजी के साथ समॠमेलन का उदॠघाटन भाषण देने के लिठबॠलाया था। चाठदनी चौक की ठक धरॠमशाला में हॠठइस समॠमेलन के साथ ही मेर जीवन के सबसे महतॠवपूरॠण दौर का शॠरीगणेश हॠआ।1988 में दिलीप और जॠगनू रामासॠवामी के साथ मैं पंजाब की ’खोज-यातॠरा’ पर गया था। इस यातॠरा में मॠलाकातें हॠईं थी सीपीआई, सीपीठम और ठमठल के कारॠयकरॠताओं से, कांगॠरेस और भाजपा के नेताओं सें, सॠवयं खालिसॠतानी आंदोलन के पॠरवकॠताओं से, दमदमी टकसाल तक जाकर मिले थे हम लोग खाड़कॠओं और उनके ’आइडियालॉगस’ से....और हमारा बेस कैंप था- अमृतसर में सीपीआई का ऑफिस, जो सतॠयपाल डाठग का निवास-सॠथान भी था। 

हमारे सतत ’गाइड’ थे कामरेड सतॠयपाल डाठग....उसके बाद कॠछ और मॠलाकातें भी...आखिरी बार मॠलाकात हॠई- सन 2006 में जब वे किसी रिशॠतेदार के घर, मेरठआठहॠठथे, मैं अकॠषय बकाया के साथ उनसे मिलने गया था। मारॠकॠसवाद में उनकी आसॠथा हमेशा की तरह ताजी थी, लेकिन सोवियत संघ से लेकर भारत तक में कमॠयॠनिसॠट आंदोलन की पसॠती का असर उन पर भी साफ दिखता था। खासकर जाति और जातिगत आरकॠषण à¤•à¥‡ पॠरति पारॠटी और वाम के रवैये पर उनकी खिनॠनता बहॠत मॠखर थी। à¤•à¤¾à¤®à¤°à¥‡à¤¡ सतॠयपाल डाठग के निधन का समाचार जान कर लगा कि सांपॠरदायिकता विरोधी आंदोलन से जॠड़े अनॠभव लिखने का समय आ ही गया है, 1984, 1987...फिर वह जॠनॠन à¤¹à¤° तरह के सांपॠरदायिक फासिजॠम से लड़ने का, ऋॠतविक को पेट में लिठसॠमन Suman Keshari Agrawal का वह साहस कि मैं दिलीप और जॠगनू के साथ 1988 के पंजबा में पॠरवेश कर रहा हूठ, माठअपने आठसू रोक नहीं पा रही है, और सॠमन....सदा की तरह सॠदृढ़.... à¤ªà¤¾à¤–ंड खंडिनी पताका जैसे कितने आयोजन, à¤®à¥‡à¤°à¤ à¤¤à¤• की पद-यातॠरा....कितने भाषण, कितनी यातॠराठं...संघी मितॠरों तथा उनके अनॠय संसॠकरणों की कितनी "कृपाठं"....सांपॠरदायिकता विरोधी आंदोलन के दिनों के बारे में लिखना शॠरॠकरना.... à¤¯à¤¹ शायद आतॠमकथा लिखने का आरंभ भी हो सकता है। (by Purushottam Agrawal)



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